Tuesday, April 20, 2010
क्या बिना वृक्षों के प्रकृति का श्रृंगार संभव है .......
प्रकृति परमात्मा की अनुपम कृति है । प्रकृति का पल -पल परिवर्तित रूप उल्लासमय है । हृदयाकर्षक है, वह मुस्काती रहती है, सर्वस्व लुटाकर भी हंसती रहती है। प्रकृति के इस सोंदर्य को वृक्ष चार चाँद लगाते है, फूलों की मनोहारी सुन्दरता से मन आत्मविभोर हो जाता है, उसके सोंदर्य से प्रकृति एक दुल्हन के सामान प्रतीत होती है तो क्या बिना वृक्षों के प्रकृति रूपी सुन्दरी का श्रृंगार संभव है। बिना गहनों के क्या दुल्हन मन को लुभा सकती है। वृक्ष प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग है । वृक्षों की कटाई प्रकृति से उसका श्रृंगार छीन लेगी। न श्रृंगार, न उल्लास, फिर कौन जाना चाहेगा प्रकृति की गोद मे ?
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very good... khud kiya na... good effort.. put a question to discuss...
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